मैंने पहली बार यह निर्णय लिया कि केवल आंदोलन को लक्ष्य करके नहीं, बल्कि आंदोलन के लाभ के लिए इस पुस्तक को दो भागों में लिखूं । किसी भी मतवादी शोधग्रंथ की अपेक्षा यह सीखना आवश्यक था कि मैं इस आंदोलन से बहुत कुछ सीख सकूं । इसने मुझे एक अवसर भी दिया, ताकि मेरा आत्मविकास हो सके और वास्तव में इस तरह की बातें लिखने से पहले और दूसरे भाग को लोग समझ सकेंगे और मेरे बारे में यहूदी समाचार पत्रों द्वारा फैलाई गई मिथ्या अब धारणाएं कमजोर होगी । इस काम में मैं किसी आश्चर्यजनक व्यक्ति के रूप में परिणत नहीं हुआ, बल्कि उन लोगों को कुछ कहने में सक्षम हुआ, जो आंदोलन के प्रति सहानुभूति रखते थे और जो इस आंदोलन के बारे में और पढ़ने की इच्छा रखते थे । मैं जानता हूं कि थोड़े–बहुत लेखन कार्य से लोगों पर भाषण जैसा प्रभाव नहीं डाला जा सकता है और इस धरती पर होने वाले हर महान आंदोलन के लिए महान वक्ताओं की आवश्यकता होती है, न कि महान लेखकों की । हालांकि इस सत्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि किसी भी राज्य को बचाने के लिए समानता और सहिष्णुता जैसे गुणों का विकास करने के लिए इसके आधारभूत सिद्धांतों को लिखना आवश्यक होता है । संभव है इन दो भागों से इस तरह की आधारशिला बन जाएगी, जिसके लिए मैंने भी मेहनत की है । ---अडोल्फ हिटलर दि फोट्रेस लैंड्जबर्ग एम लेक